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Friday, 14 September 2018

प्रारब्ध

एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर का नाम का जाप किया करता था |  धीरे-धीरे वह काफी बुजुर्ग हो गया इसलिए एक कमरे में ही पड़ा रहता था | जब भी उसे शोच - स्नान आदि के लिए जाना होता था  तो वह अपने बेटों को आवाज़ लगाता था और बेटे ले जाते थे |  धीरे-धीरे जब कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी आते हैं और देर रात को नहीं भी आते थे |  इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करता था |  अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा |  एक रात निवृत होने के लिए जैसे ही उन्होंने आवाज़ लगाई तुरंत एक लड़का आता है और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ उनको  निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लिटा जाता है | अभी यह  रोज का नियम हो गया | एक रात उसे  शक हो जाता है कि पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी वह नहीं आते थे | लेकिन यह तो आवाज़ लगाते ही दूसरे ही क्षण आ जाता है | और बड़ी कोमल स्पर्श से निवृत करवा देता है |  एक रात में बुजुर्ग उस लड़के का हाथ पकड़ लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है मेरे बेटे तो ऐसे नहीं हैं |  तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया | वह व्यक्ति रोते हुए कहता है हे प्रभु आप स्वयं मेरे  निवृत्ति के कार्य कर रहे हैं, "यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुझे मुक्ति दे दो ना " प्रभु कहते हैं कि जो आप भुगत रहे हैं वह आपके प्रारब्ध  है | आप मेरे सच्चे साधक हैं हर समय मेरा जॉब करते हैं इसलिए मैं आपके प्रारब्ध  भी  आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूं | व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे  प्रारब्ध आपकी  कृपा से भी बड़े हैं | क्या आपकी कृपा मेरे  प्रारब्ध नहीं काट सकती |  प्रभु कहते हैं कि मेरी कृपा सर्वोपरि है यह अवश्य आपके  प्रारब्ध  काट सकती है लेकिन अगले जन्म में आपको यह  प्रारब्ध  भुगतने फिर से आना होगा | यही कर्म नियम है इसलिए आप के प्रारब्ध  में स्वयं अपने हाथों से कटवा कर इस जन्म मरण के चक्र से आप को मुक्त करवाना चाहता हूं|  ईश्वर कहते हैं "प्रारब्ध तीन तरह के होते हैं मंद, तीव्र  और तीव्रतम " | मंद प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं|  तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का सत्संग सुनने से नाम जपने से कट जाते हैं | पर तीव्रतम  प्रारब्ध भुगतने पड़ते हैं लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं उनके प्रारब्ध में स्वयं साथ रहकर कटवाता हूं | और तीव्रता का एहसास नहीं होने देता | प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर|
 तुलसी चिंता क्यों करे बदली श्री रघुवीर || 

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