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Saturday, 8 September 2018

भामा शाह का त्याग

यह बात उस समय  की है जब चित्तोड़ पर अकबर  ने कब्ज़ा कर लिया था | महाराणा प्रताप अपने परिवार और कुछ राजपूतों  के साथ  अरावली के वनो में भटकने को मजबूर थे | चित्तौड़ के महाराणा और सोने के पलंग पर सोने वाले उनके बच्चे भूखे -प्यासे पर्वत की गुफाओं में घास- पत्ते खाते और पत्थर की चट्टानों पर सो जाते थे लेकिन महाराणा प्रताप को इन सब कष्टों की चिंता नहीं थी|  उन्हें एक धुन  थी कि शत्रु से चित्तौड़ की पवित्र भूमि का उद्धार कैसे किया जाए|  किसी के पास काम करने का साधन न  हो तो उनका अकेला उत्साह क्या काम आएगा |  महाराणा प्रताप और उनके सैनिक भी कुछ दिन भूखे प्यासे रह सकते थे किंतु भूखे रहकर युद्ध कैसे चलाया जा सकता है? घोड़ों के लिए ?हथियारों के लिए ?सेना को भोजन देने के लिए तो धन चाहिए ही |  महाराणा के पास फूटी कौड़ी तक नहीं बची थी | उसके राजपूत और भील सैनिक अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार थे ,उन देशभक्त वीरों को वेतन नहीं लेना था | किंतु बिना धन के घोड़े कहां से आएंगे? हथियार कैसे बनेंगे? मनुष्य और घोड़ों  को भोजन कैसे दिया जाएगा इतना भी प्रबंध न हो तो बड़ी निराशा हो रही थी|  अंत में एक दिन माराणा ने अपने सरदारों से विदा ली भिलों को समझा कर लौटा दिया प्राणों से प्यारी जन्मभूमि को छोड़कर महाराणा राजस्थान से कहीं बाहर जाने को तैयार हुए जब महाराणा अपने सरदारों को रोता छोड़कर महारानी और बच्चों के साथ में वन के मार्ग से जा रहे थे|



तभी महाराणा के मंत्री भामाशाह घोड़ा दौड़ आते आए और महाराणा के पैरों पर गिर कर फूट-फूट कर रोने लगे आप हम लोगों को अनाथ करके कहां जा रहे हैं|  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को उठाकर हृदय से लगाया और आंसू बहाते हुए कहा आज भाग्य हमारे साथ नहीं है अब यहां रहने से क्या लाभ |  मैं इसलिए जन्मभूमि छोड़कर जा रहा हूं कि कहीं कुछ धन मिल जाए और उससे सेना एकत्र करके चित्तौड़ का उद्धार करने फिर से लौटू | आप लोग तब तक धैर्य बनाकर रखें |  भामाशाह के पीछे उनके बहुत से सेवक घोड़ों पर धन की थैली लादकर ला रहे थे |  भामाशाह ने महाराणा के आगे धन का बडा भारी ढेर लगा दिया और फिर हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा महाराज यह सब धन आपका ही तो है | मैंने और मेरे बाप दादाओं ने चित्तौड़ के राज दरबार की कृपा से उसे इकट्ठा किया है | आप कृपा करके इसे स्वीकार कीजिए और इसे देश का उद्धार कीजिए | महाराणा यह यह सुनकर भावविभोर हो गये |  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को हृदय से लगा लिया उनकी आंखों से आंसू की बूंद टपक टपक कर गिरने लगी | वह बोले लोग प्रताप को देश का उद्धार कहते हैं किंतु इस पवित्र भूमि का उद्धार तो तुम्हारे जैसे उदार पुरुषों से होगा |  तुम धन्य हो भामाशाह तुम धन्य हो |  उस धन से महाराणा प्रताप ने सेना इकट्ठी की और मुगल सेना पर आक्रमण किया मुगलों के अधिकार से बहुत सी भूमि महाराणा प्रताप ने जीत ली और उदयपुर में अपनी राजधानी बना ली |  महाराणा प्रताप की वीरता जैसे राजपूतों के इतिहास में विख्यात है वैसे ही भामाशाह का त्याग भी हमारे देश के इतिहास में विख्यात है ऐसे त्यागी पुरुष ही देश का गौरव होते हैं|

वन -वन भटके मान पर, देश -धर्म अभिमान पर | 
राणा वीर प्रताप मिट गए, देखो  अपनी   पर || 

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