sangh dhara, BIOGRAPHY, FACT, GEET, HINDI POEMS, HISTORY, PRAYER ,SCIENCE, STORY, TRUE STORY, success story

Recent Post

Responsive Ads Here
Showing posts with label Epigram. Show all posts
Showing posts with label Epigram. Show all posts

Saturday, 8 September 2018

सुभाषित

सुत , दारा  अरु  लक्ष्मी,   पापी के भी होय | 


संत समागम ,हरि कथा ,तुलसी दुर्लभ  दोय || 

अर्थ :-तुलसी जी कहते है की पुत्र , पत्नी और लक्ष्मी तो पापी लोगों के पास भी होती है | संत का समागम और हरी कथा ये दोनों ही दुर्लभ होती हैं |  

Friday, 7 September 2018

सुभाषित

उदये सविता रक्तो रक्ताश्चाऽस्तसमये तथा ।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ॥ 


अथार्त :- सूर्य दोनों समय उदय और अस्त होने पर लाल रहता है | इसी प्रकार महापुरुष अच्छे और बुरे समय में  समान स्थिति में तहते है | 

सुभाषित

हिमालयं समारभ्य यावातू इंदु सरोवरं|
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्तनम प्रचक्षते|| 

 अर्थात :-हिमालय से लेकर इंदु सरोवर (हिन्द महासागर )तक  का भू-भाग  देवताओं द्वारा निर्मित है | जो हिंदुस्तान के नाम से प्रसिद्ध है | 

सुभाषित

अश्वं  नैव गजं  नैव व्याघ्रं  नैव  च नैव  च | 
अजापुतरं बलिं  दघात  देवो दुर्बल घातकः || 

अथार्त :-बलि किसकी दें ? अश्व की ? नहीं  हाथी की ? नहीं शेर की ? नहीं  नहीं | बकरी के बच्चे की बाकि दें ,क्यूंकि देवता भी दुर्बलों पर घात करते हैं |  

सुभाषित

लालयेत पंचवर्षाणि ,द्वादशवर्षाणि  ताडयेत | 
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे ,पुत्रं   मित्रमिवाचरेत  || 

अथार्त :-पुत्र का ५ वर्ष तक की आयु तक स्न्हेपूर्वक लालन पालन करे ,उसके बाद १० से १५ वर्ष तक उसे डाँटकर या दंड देकर अच्छे कामो में लगाए | परन्तु १६ वर्ष का होने पर उसके साथ मित्र की भांति व्यहवार करे | 

सुभासित

देश रक्षा समं पुण्यं ,देश रक्षा समं व्रतम | 
देश रक्षा समं योगो , द्रस्टो नैव च नैव च || 

अर्थ :-देश रक्षा के समान पुण्य , देश की रक्षा के समान  कोई तप नहीं  देखा | अथार्त देश की रक्षा ही सर्वोच्च कार्य है | 

सुभाषित

परोपकाराय फलन्ति वृक्षः ,
           परोपकाराय वहन्ति नध:|
परोपकाराय दुहन्ति गाव:,
           परोपकारार्थम्मिद्म्  शरीरं ||

आथर्त ---दुसरो की भलाई के लिए वृक्ष फल देते हैं | | दूसरों को जल देने के लिए नदियां  बहती है | गाय  भी दूसरों के लिए दूध देती है | भगवन ने हमें जो शरीर दिया है यह भी परोपकार करने के लिए दिया है | हमें अपने शरीर को समाज कलयाण में लगाना चाहिए | 

सुभाषित


शूरा सो पहचानिए ,जो लारे दीन के हेत | 
पुरजा -पुरजा कट मरे ,कबहुँ न छोड़े खेत || 

अथार्त --ऐसे शूरवीरों  पहचान रखनी चाहिए ,जो दीन हीन के लिए लड़े | उनका अंग -अंग लड़ते -लड़ते कट  जाये ,परन्तु यूद्ध का मैदान कभी नहीं छोड़ते | 

सुभासित


पुनर्वित्तं  पुनर्मित्रं ,पुनर्भार्या पुनर्मही | 
ऐतत्सर्वं  पुनर्लभ्यम , न शरीरं पुनः पुनः || 

अथार्त --यद्पि धन ,सम्पति ,मित्र ,स्री ,राज्य  बार बार मिल जाते है | लेकिन मनुष्य शरीर केवल एक बार ही मिलता है | एक बार नस्ट हो जाने के बाद  पुनः नहीं मिलता | 

सुभाषित


धन धन्य सुसम्पन्नं ,स्वर्णरत्नादि  सम्भवं | 
सुसंहति विना राष्ट्रं ,नहि स्यात शून्यवैभवं || 

अथार्त -- धन धान्य  से सुसम्पन्न ,सोने और रत्नं  की प्रचुर खानो से परिपूर्ण हो ,असा राष्ट्र भी संगठित समाज के बिना वैभवशाली नहीं हो सकता हैं |  

सुभाषित .


सवदेशे  कष्टमापने ,उदासीनास्तु  ये नराः | 
नैव च प्रतिकुवृन्ति ,ते नराःशत्रुननदनाः || 

अथार्त --जब देश संकट में पड़ा हो ,तब जो लोग उदासीन भाव से दूर खड़े देखते है और पर्तिकार का कोई प्रयत्न नहीं करते ,वे शत्रुओ को ही आनंद देने वाले होते है | यानि उनको देखके शत्रु को बड़ी प्रसन्ता होती है |