नदिया ना पिए कभी अपना जल,
वृक्ष ना खाए कभी अपने फल ।
अपने तन को मन को धन को देश को दे जो दान रे ,
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे ॥
चाहे मिले सोना चांदी .....
चाहे मिले रोटी बासी |
महल मिले बहु सुखकारी......
चाहे मिले कुटिया खली |
प्रेम और सांतोस भाव से करता जो स्वीकार रे |
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे ॥
चाहे करे निंदा कोई.......
चाहे कोई गुण गान करे|
फूलों से सत्कार करे.........
कांटो की चिंता न करे ।
मान और अपमान ही दोनों, जिसके लिए सामान रे | ,
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे ॥
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