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Sunday, 9 September 2018

परीक्षित को ऋषि पुत्र का श्राप

एक समय की बात है एक जंगल में श्रृंगी ऋषि  तपस्या कर रहे  थे|  उसी जंगल में राजा परीक्षित शिकार खेलने आए|  गर्मी के कारण उन्हें बहुत प्यास लगी और वे  जल की तलाश में निकल पड़े | उन्होंने निकट ही एक आश्रम देखा और वहां पर चले गए | वहां पर उन्होंने श्रृंगी ऋषि को तपस्या करते हुए देखा और उन्हें जल लेने के लिए  पुकारा| तपस्या में लीन होने के कारण उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया |  राजा भी  अपने घमंड में थे |  बार-बार पुकारने पर भी जब ऋषि ने अपनी आंखें नहीं खुली तो राजा को गुस्सा आ गया और उहोने धनुष की नोक से  मरे हुए सांप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और पास रखे घड़े से खुद ही  पानी पीकर वहां से चले गए |  राजा के जाने के पश्चात ऋषि श्रृंगी के  पुत्र को उसके मित्रों ने बताया कि राजा परीक्षित ने  यहां आकर उनके पिता का अपमान किया और उनके गले में मृत सांप डाल दिया |  यह सुनकर ऋषि पुत्र को बहुत अधिक गुस्सा आया और राजा को श्राप दिया कि आज से ठीक 7 दिन बाद उन्हें नागराज तक्षक डस लेगा |  ऋषि पुत्र के इस श्राप का पता चलते ही राजा परीक्षित भयभीत हो उठे और उन्होंने श्राप  से बचने के लिए हर संभव प्रयास किया |  किंतु होनी को कौन टाल सकता था |  समय निकट आते ही तक्षक राजा परीक्षित को डसने के लिए निकल पड़ा रास्ते में उनकी भेंट एक कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण से हुई  |  ब्राह्मण ने पूछा कि तुम कहां जा रहे हो तो तक्षक ने बताया कि वह श्राप  के अनुसार राजा परीक्षित को दंशने  जा रहा है|  तब  ब्राह्मण  ने कहा कि वह राजा परीक्षित को बचाने के लिए जा रहा है|  यह सुनकर नागराज तक्षक ने  पास में ही एक पेड़ के ऊपर अपना विष फेंक  दिया जिससे वह पेड़ जलकर सूख गया | तभी उस ब्राह्मण ने हाथ में जल लेकर कुछ मंत्र पढ़कर उस पेड़ पर छिड़क दिया जिससे वह पेड़ वापिस हरा हो गया   इस पर तक्षक को बहुत हैरानी हुई और उसने ब्राह्मण  से क्षमा मांगी और उन्हें यह समझा कर कि श्राप को टाला नहीं जा सकता है  और उन्हें वापस भेज दिया  | तक्षक भी   अपने मार्ग पर आगे बढ़ गया और ठीक सातवें दिन उसने राजा परीक्षित को डस लिया जिससे राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी | 

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