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Sunday, 9 September 2018

राष्ट्रभासा हिंदी व महापुरुषों का योगदान

 वो दिन था 14 सितंबर, 1949 का जब  हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था तब से हर साल  14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है|  लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है? 
इसके पीछे एक वजह है साल 1947 में जब भारत अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ तो देश के सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था की देश की भाषा क्या हो ? 
क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती है | 6 दिसंबर 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान का गठन हुआ | संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को अंतिम रूप दे दिया | आजाद भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हो गया | 
भारत की कौन सी  भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में चुनी जाएगी ये मुद्दा काफी अहम था | काफी सोच विचार के बाद हिंदी राष्ट्र भाषा  चुना गया | संविधान पीठ  ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया |  14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी | और तभी से 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है  | 
भले ही राजभाषा का दर्जा हिंदी को 1949 में मिला हो लेकिन उससे पहले  हिंदी को पतन से रोकने के लिए व हिंदी के उत्थान  के लिए अनेक महापुरुषों ने कार्य किया | 
  • बाल गंगाधर तिलक :- सवराज हमारा जन्मसिद्व अधिकार है का नैरा देने वाले तिलक जी स्वदेशी के बहुत बड़े समर्थक थे | वे मानते थे की हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो राष्ट्र भाषा  बनाने के लायक है  | वे हिंदी को राष्ट्र भाषा ही मानते थे | इसलिए उन्होंने लोगों तक अपनी बात पहुंचने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया | तथा एक" हिंदी केशरी " नामक पत्रिका का संपादन भी किया
  • प. मदन मोहन मालवीय :-मालवीय जी एक महान राष्ट्रीय नेता थे | जो तीन बार हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने | वे अपने कार्यक्रमों में हिंदी का प्रयोग करते थे  तथा अन्य लोगों को भी हिंदी भाषा का प्रयोग करने के लिए उत्साहित करते थे  | 1886 में अधिवेशन में मालवीय जी के व्याख्यान से प्रभावित होकर कंकर के राजा ने उन्हें हिंदुस्तान दैनिक पत्र का संपादक बनाया था | उन्होंने 1907 में साप्ताहिक हिंदी पत्रिका अभ्युदय का प्रारंभ किया तथा  उन्होंने हिंदी को गति देने के लिए 1910 में इलाहाबाद से "मर्यादा "हिंदी मासिक पत्रिका का संपादन किया |  मालवीय जी हिंदी के महान प्रेमी थे  | उनके मन में हिंदी के लिए एक विशेष आदर का भाव था इसलिए उन्होंने शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता पर बल दिया  | न्यायालय में  हिंदी को स्थान दिलाने का श्रेय मालवीय जी को ही जाता है |  उनकी प्रेरणा से देश में हिंदी के प्रति प्रबल अनुराग और राष्ट्रीयता का भाव जगा | 
  • डा. राजेंद्र प्रसाद :-डॉ राजेंद्र प्रसाद अखिल भारतीय कांग्रेस के सम्मानीय सदस्य थे  | देश की सभी  भाषाओं से इनका गहरा संबंध था | हिंदी के प्रयोग हेतु सब को प्रेरित करते थे|  उनके हिंदी के प्रति विचार हैं" मैं हिंदी के प्रचार राजभाषा के प्रचार को राष्ट्रीयता का मुख्य अंग मानता हूं मैं चाहता हूं कि यह भाषा ऐसी हो जिसमें हमारे विचार आसानी से साफ साफ स्पस्टता पूर्वक के व्यक्त हो सकती हैं राष्ट्र भाषा होनी चाहिए जिसे केवल एक जगह के लोग  ही न समझे बल्कि उसे देश के सभी प्रांतों में  सुगमता से पहुंचाया जा सके"| 
  • सेठ गोविन्द दास :-हिंदी  भाषा के प्रचार के साथ इसे राष्ट्रभाषा के रूप में सुशोभित करने में सेठ गोविंद दास की भूमिका अतुल्यनीय है | यह उच्च कोटि के साहित्यकार थे | तथा उनकी नाटिकाओं से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ | उन्होंने जबलपुर से शारदा ,लोकमत,  जय हिंद पत्रिकाओं की शुरूआत कर जन मन में हिंदी के प्रति प्यार जगाने और साहित्य परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया |  भारतीय संविधान सभा में हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर उठे विवाद को शांत करने में सेठ गोविंददास का विशेष महत्व रहा है | 
और भी बहुत व्यक्ति हुए जिन्होंने हिंदी को बचने में तथा राष्ट्र भासा बनाने में अपनी भूमिका निभाई थी जिनका जिक्र माँ आज नहीं क्र पाया | 

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