sangh dhara, BIOGRAPHY, FACT, GEET, HINDI POEMS, HISTORY, PRAYER ,SCIENCE, STORY, TRUE STORY, success story

Recent Post

Responsive Ads Here

Wednesday, 12 September 2018

भारत का प्राचीन वनस्पति विज्ञान

वर्तमान काल के महान वैज्ञानिक  जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया कि चेतना केवल मनुष्य और पशुओं ,पक्षियों तक ही सीमित नहीं है|  अपितु वह वृक्षों और निर्जीव पदार्थों में भी समाहित है उन्होंने कहा कि निर्जीव और सजीव दोनों समान  हैं इनमे अंतर केवल इतना है कि धातुओ  में थोड़ी कम संवेदनशील होती हैं जिनमें डिग्री का अंतर है परंतु चेतना सब में होती है | 

महाभारत के शांतिपूर्व में 184 वीं अध्याय में महर्षि भारद्वाज  और भृगु  का संवाद है जिसमें महर्षि भारद्वाज पूछते हैं कि वृक्षो जो  की न देखते हैं न सुनते हैं, पर न ही गंध  का अनुभव करते हैं ना ही उन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है | फिर भी वे  पंचभौतिक व चेतन कैसे हैं ? महर्षि भृगु   उत्तर देते हुए कहते हैं  की वृक्ष ठोस  जान  पड़ते हैं परंतु उनमें आकाश है, तभी उनमें नित्य फल फूल आदि की उत्पत्ति संभव है|  वृक्षों के अंदर गर्मी से ही उनके पत्ते फल फूल जल  जाते हैं झड़ जाते हैं, उनमें स्पर्श का ज्ञान भी है|  वायु अग्नि बिजली की कड़क आदि भीषण शब्द होने पर वृक्षों के फल फूल गिर जाते हैं| इसलिए वे  सुनते भी हैं | लता वृक्ष को चारों ओर से लपेट कर उसके ऊपर चढ़ जाती है बिना देखे किसी को अपना मार्ग नहीं मिलता अतः वे  देखते भी हैं|  पवित्र और अपवित्र गंद से तथा विभिन्न प्रकार के धूपों  की गंध से वृक्ष निरोग होकर फलते-फूलते हैं अतः वे  सूंघते भी हैं | वृक्ष अपनी जड़ से जल पीते हैं अतः वे इंद्रिय भी हैं|

 महर्षि पराशर ने वनस्पतियों का वर्गीकरण किया है आश्चर्य है कि पराशर का वर्गीकरण आधुनिक  काल के वर्गीकरण से मिलता-जुलता है | वृक्षायुर्वेद ग्रंथ में वनस्पति विज्ञान का वैज्ञानिक विवेचन उन्होंने किया है | उन्होंने चौथे अध्याय में  प्रकश संश्लेषण की क्रिया के बारे में कहा है

                    " पत्राणि तू वातालपर रेंजकानि अभिग्रेहणान्ति "

वृक्ष के विकास की संपूर्ण गाथा का वर्णन उन्होंने किया है|  जिस प्रकार पार्थिव  रस  जड़ से स्यन्दिनी नामक वाहिकाओं के द्वारा ऊपर आता है | यह रस पत्ते तक  पहुंचता है तब यह दो प्रकार की शिराओं, उपसर्ग और अपसर पर जो जाल  की तरह पत्ते में  होती हैं उनमें पहुंच जाता है|  यहां संश्लेषण की प्रक्रिया होती है| अर्थात यह अनु के समान माइक्रोस्कोपिक है जिसमें रस है और यह कला में अवशिष्ट है

1 comment: