संघ धारा......

sangh dhara, BIOGRAPHY, FACT, GEET, HINDI POEMS, HISTORY, PRAYER ,SCIENCE, STORY, TRUE STORY, success story

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Saturday, 15 September 2018

कुतुबुदीन की मोत का राज

कुतुबुदीन की मोत  के बारे में बताया जाता है की उसकी मोत पोलो खलते समय घोड़े से गिरने से हुई थी | लेकिन गोर करने वाली बात यह है की ये अफगान/तुर्की लोग पोलो खेलते ही नही थे |

 वे बुजकसी खेलते थे जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है |,जो उस बकरे को लेकर मंजिल तक पहुँचता  है वह जीत जाता है | फारस के प्राचीन लेखो के अनुसार कुतुबुदीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेक इलाको में अपना कहर बरसाया था |
 उसका सबसे कड़ा विरोध उदयेपुर के राजा ने किया ,लेकिन कुतुबुदीन उन्हें हराने में सफल रहा | उसने धोखे  से राजकुंवर कर्णसिंह और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़ लिया | एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशीश की लेकिन पकडे गये | इस से क्रोधित होकर कुतुबुदीन ने उनका सर काटने का हुकुम दिया | 


दरिंदगी दिखाने के लिए कुतुबुदीन ने कहा की बुजकशी खेला जायेगा,लेकिन इसमें बकरे की जगहे राजकुंवर का सर होगा | कुतुबुदीन ने इस कम के लिए घोडा भी राजकुंवर का "शुभ्रक " चुना | कुतुबुदीन शुभ्रक पर सवार होकर आपनी टोली के साथ जन्नत बाग पहुंचा | राजकुंवर को भी जंजीरों में बांध के वहां लाया गया | कुंवर का सर काटने के लिए  उन्हें जंजीरों से खोला गया ,शुभ्रक  उछाला और कुतुबुदीन को अपनी पीठ से निचे गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने पेरो से कई वॉर किये ,जिससे कुतुबुदीन वही मर गया | इससे पहले सिपाही कुछ समज पते  राजकुंवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गये | शुभ्रक लगातार दोड कर उन्हें उदयपुर महल पहुंचा दिया|

कुतुबुदीन की मोत और शुभ्रक की स्वामी भक्ति की इस घटना के बारे में हमें नही पढाया जाता |लेकिन इस घटना के बारे में फारस के प्राचीन लेखकों ने बहुत लिखा है
"धन्य है भारत की भूमि ,जहाँ इन्सान तो क्या जानवर भी अपने स्वामी भक्ति के लिए प्राण दाव पर लगा देते है "|

Friday, 14 September 2018

सहीद अशफाक उल्लाह खां

 देश सेवा  को सर्वोच्च मानने वाले  अमर शहीद अशफाक उल्ला खां  हिंदू- मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर थे |  काकोरी कांड के सिलसिले में 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी पर चढ़ाए गए अशफाक उल्ला खां ने समय-समय पर अपने अनूठे उदाहरण पेश किए जिससे प्रतीत होता है कि वह हिंदू- मुस्लिम एकता के न सिर्फ प्रबल समर्थक थे बल्कि वह इस दिशा में रचनात्मक कार्य भी कर रहे थे |  दिल्ली में गिरफ्तार कर लिए जाने के बाद काकोरी कांड के विशेष न्यायाधीश सें ० एनुदीन  ने जब उन्हें समझाने की कोशिश की तो अशफाक उल्ला ने जवाब दिया था कि" मैं अकेला मुस्लिम हूं इसलिए मेरी और भी जिम्मेदारी है"

 जेल में उससे मिलने आए एक मित्र ने उन्हें जेल से भगाने की बात की तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया था कि "भाई किसी मुसलमान को भी तो फांसी चढ़ने दो" उनकी हार्दिक इच्छा थी कि क्रांतिकारी गतिविधियों में हिंदू-मुस्लिम नवयुवक सक्रिय  भूमिका निभाए |  काकोरी कांड के नायक शहीद रामप्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में उनके बारे में लिखा है कि" मेरे कुछ साथी अशफाकुल्लाह के मुसलमान होने की वजह से घृणा की दृष्टि से देखते थे हिंदू मुस्लिम झगड़ा होने पर जातीय लोग खुल्लम-खुल्ला गालियां देते थे उन्हें काफिर के नाम से पुकारते थे पर वह ऐसे लोगों के विचारों से सहमत हुए बगैर अपने पथ पर आगे बढ़ते रहें "|

शहीद बिस्मिल ने लिखा है कि अशफाक सदैव हिंदू मुसलमानों को एक साथ रहकर काम करने के पक्षधर थे अशफाक उल्ला खान के क्रांतिकारी आंदोलन में दिए सहयोग को अपनी एक उपलब्धि मानते हुए शहीद बिस्मिल ने लिखा है कि" हम दोनों के फांसी पर चढ़ने से लोगों को एक संदेश मिलेगा जो भाईचारे को बढ़ाते हुए देश की स्वतंत्रता और तरक्की के लिए काम आएंगे"|


 राष्ट्रीयता के प्रबल समर्थक शहीद अशफाक उल्ला एक अच्छे शायर भी थे हसरत वारसी के नाम से शायरी किया करते थे उनकी शायरी में औज  और माधुरी के साथ  जनता में राष्ट्रीय भावना जागृत करने की अपूर्व शक्ति थी | उनकी शायरी से झलका है कि उनके दिल में गुलामी और सामाजिक संरचना को लेकर कितनी पीड़ा थी | उनकी भावनाओं को प्रकट करते हुए अशफाक ने लिखा है कि
" जमी दुश्मन जमा दुश्मन, जो अपने थे पराए हैं, सुनेंगे क्या दास्तां क्या तुम मेरे हाले परेशा की | यह झगड़े और बखेड़ा भेट कर  आपस में मिल जाओ यहतहरीके अबस  है हिंदू और मुसलमान की ||"

स्वतंत्रता के लिए आशावादी रहे इन क्रांतिकारियों ने सदैव स्वतंत्रता के लिए दृढ़ इच्छा रखी |  इनका मानना था कि
" मरते बिस्मिल, रोशन लाहिड़ी, अशफाक अत्याचार से, होंगे सैकड़ों पैदा इनकी रुधिर की धार से"

 महान क्रांतिकारी पंडित रामविलास बिस्मिल अशफाक उल्ला खां , ठाकुर रोशन सिंह ने 19 दिसंबर 1927 को देश के खातिर हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था |  राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जिला जेल में | 

अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में | 

और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जिला जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में अशफाक उल्ला को फांसी लगने कि 1 दिन पूर्व जेल वालों ने अंतिम इच्छा जानना चाहा तो अशफाक ने रेशम के नए कपड़े और अच्छा सा ईत्र मांगा जेल वालों ने तुरंत इसकी व्यवस्था कर दी फैजाबाद जेल स्थित फांसी घर को अब शहीद कक्ष के नाम से जाना जाता है

प्रारब्ध

एक व्यक्ति हमेशा ईश्वर का नाम का जाप किया करता था |  धीरे-धीरे वह काफी बुजुर्ग हो गया इसलिए एक कमरे में ही पड़ा रहता था | जब भी उसे शोच - स्नान आदि के लिए जाना होता था  तो वह अपने बेटों को आवाज़ लगाता था और बेटे ले जाते थे |  धीरे-धीरे जब कुछ दिन बाद बेटे कई बार आवाज लगाने के बाद भी कभी-कभी आते हैं और देर रात को नहीं भी आते थे |  इस दौरान वे कभी-कभी गंदे बिस्तर पर ही रात बिता दिया करता था |  अब और ज्यादा बुढ़ापा होने के कारण उन्हें कम दिखाई देने लगा |  एक रात निवृत होने के लिए जैसे ही उन्होंने आवाज़ लगाई तुरंत एक लड़का आता है और बड़े ही कोमल स्पर्श के साथ उनको  निवृत्त करवा कर बिस्तर पर लिटा जाता है | अभी यह  रोज का नियम हो गया | एक रात उसे  शक हो जाता है कि पहले तो बेटों को रात में कई बार आवाज लगाने पर भी वह नहीं आते थे | लेकिन यह तो आवाज़ लगाते ही दूसरे ही क्षण आ जाता है | और बड़ी कोमल स्पर्श से निवृत करवा देता है |  एक रात में बुजुर्ग उस लड़के का हाथ पकड़ लेता है और पूछता है कि सच बता तू कौन है मेरे बेटे तो ऐसे नहीं हैं |  तभी अंधेरे कमरे में एक अलौकिक उजाला हुआ और उस लड़के रूपी ईश्वर ने अपना वास्तविक रूप दिखाया | वह व्यक्ति रोते हुए कहता है हे प्रभु आप स्वयं मेरे  निवृत्ति के कार्य कर रहे हैं, "यदि मुझसे इतने प्रसन्न हो तो मुझे मुक्ति दे दो ना " प्रभु कहते हैं कि जो आप भुगत रहे हैं वह आपके प्रारब्ध  है | आप मेरे सच्चे साधक हैं हर समय मेरा जॉब करते हैं इसलिए मैं आपके प्रारब्ध  भी  आपकी सच्ची साधना के कारण स्वयं कटवा रहा हूं | व्यक्ति कहता है कि क्या मेरे  प्रारब्ध आपकी  कृपा से भी बड़े हैं | क्या आपकी कृपा मेरे  प्रारब्ध नहीं काट सकती |  प्रभु कहते हैं कि मेरी कृपा सर्वोपरि है यह अवश्य आपके  प्रारब्ध  काट सकती है लेकिन अगले जन्म में आपको यह  प्रारब्ध  भुगतने फिर से आना होगा | यही कर्म नियम है इसलिए आप के प्रारब्ध  में स्वयं अपने हाथों से कटवा कर इस जन्म मरण के चक्र से आप को मुक्त करवाना चाहता हूं|  ईश्वर कहते हैं "प्रारब्ध तीन तरह के होते हैं मंद, तीव्र  और तीव्रतम " | मंद प्रारब्ध मेरा नाम जपने से कट जाते हैं|  तीव्र प्रारब्ध किसी सच्चे संत का सत्संग सुनने से नाम जपने से कट जाते हैं | पर तीव्रतम  प्रारब्ध भुगतने पड़ते हैं लेकिन जो हर समय श्रद्धा और विश्वास से मुझे जपते हैं उनके प्रारब्ध में स्वयं साथ रहकर कटवाता हूं | और तीव्रता का एहसास नहीं होने देता | प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर|
 तुलसी चिंता क्यों करे बदली श्री रघुवीर || 

प्राचीन भारत के पांच अद्भुत अविष्कार

प्राचीन भारत के पांच अद्भुत अविष्कार:-

 सदियों पहले भारत पूरी दुनिया का विश्व गुरु था|  इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था|  भारत के बिना विज्ञान की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी | भारत में ऐसे कई प्राचीन ग्रंथ है जो अपने आप में कई वैज्ञानिक रह्शय समेटे  हुए हैं | भारत के  ऋषि-मुनियों ने कई ऐसी खोजें और जानकारियां पूरी दुनिया को दी है जिनके कारण ही आज आधुनिक विज्ञान का अस्तित्व है | थॉमस  एडिसन  ने भी अपनी लिखी गई पुस्तक में कहा है कि वे बिजली का आविष्कार ऋषि अगस्त के ग्रंथ अगस्त संहिता को पढ़ने के बाद ही कर पाए|  शून्य की खोज ,प्राचीन शल्य  चिकित्सा, बीज गणित ,परमाणु, ब्रमांड से जुड़े अनेकों रहस्यों की खोज सबसे पहली भारत में ही की गई थी |  हालाकि भारत में की गई खोजो क्या तो भुला दिया गया या  फिर विदेशियों ने उस पर अपनी नाम की मोहर लगा ली|  यहां पर ऐसे पास खास अविष्कारों के बारे में बताया गया है जो सबसे पहले भारत में ही  की गए थे | 
1.  बटन:- 
देखने पर बटन एक मामूली सी चीज लगती है |  लेकिन इसका महत्व कितना है वह सभी को पता है सबसे खास बात यह है कि प्रचीन  समय से लेकर आज तक बटन में कोई खास बदलाव नहीं किया गया है | मोहनजोदड़ो की खुदाई से यह बात पूरी दुनिया में सिद्ध हो चुकी है कि बटन का अविष्कार सबसे पहले भारत में किया गया था |  मोहनजोदड़ो के खंडर की  खुदाई के दोरान ऐसे बहुत से पुराने  कपड़े बहुत ही  खराब हालत में मिले जिन पर पत्थर के बटन लगे  हुए थे | 

2. पहिया :-
पहिए का आविष्कार मानव  सभ्यता  के इतिहास की महत्वपूर्ण खोजो में से एक माना जाता है | पहिये  का आविष्कार होने से इंसान का बहुत सा काम आसान हो गया था  | प्राचीन लेख  और ग्रंथों से यह  सिद्ध होता है कि पहिए का अविष्कार भारत में लगभग 5000 से 8000 वर्ष पूर्व ही हो गया था |  इसी आविष्कार के बाद बैलगाड़ी, साइकिल ,कार और हवाई जहाज  तक का  सफर आसान हुआ | पच्शिमी विदेशों के वैज्ञानिक पहिये के  अविष्कार का श्रेय  इराक को देते हैं | जबकि इराक एक रेगिस्तानी  देश है | और वहां के  लोगों से सदियों से ऊंट  की सवारी करते रहे हैं | आज से लगभग 2500  और 3000 वर्ष पूर्व विश्व के सबसे प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों से प्रप्त खिलौना  बैलगाड़ी भारत के  राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रमाण स्वरुप रखी गई है जिसमें पहले हुए हैं जिस से सिद्ध होता है की पहिये का अविष्कार भारत में हुआ है | 

3. शल्यचिकित्सा :-

शल्य चिकित्सा और प्लास्टिक सर्जरी के आविष्कार से दुनिया में सुंदर दिखने के लिए एक नई क्रांति आ गई | इसके अलावा प्लास्टिक सर्जरी से और भी कई अविकसित अंग और  बीमारियों को ठीक किया जाने लगा | आज के  वैज्ञानिकों का मानना है कि प्लास्टिक सर्जरी आधुनिक विज्ञान की देन है |  लेकिन भारत में सुश्रुत को पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है|  आज से करीब 3000 वर्ष पहले सुश्रुत लोगों को शल्य  चिकित्सा और प्लास्टिक सर्जरी के माध्यम से ठीक करते थे | सुश्रुत ने 1000 ई०  पूर्व ही अपने  समय के  स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव  और मोतियाबिंद ,कृत्रिम अंग लगाना पथरी का  इलाज और  प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह के जटिल सिद्धांत प्रतिपादित किए थे| 

4. अस्त्र-शस्त्र :-

अस्त्र -शस्त्र, तीर ,धनुष, भाला, तलवार जैसे हथियारों का आविष्कार भारत में ही हुआ है | इसके अलावा वेद और पुराणों में अग्नि अस्त्र और ब्रमांड अस्त्र जैसी संघारक अस्त्रों का जिक्र है |  आधुनिक समय में परमाणु हथियार के जनक जे रोबर्ट ओपन हैमर ने  गीता और महाभारत का गहन अध्यन किया था | उन्होंने महाभारत में बताएं गये ब्रह्मास्त्र की संहारक   क्षमताओं परसशोध किया |और  अपने मिशन का नाम दिया" ट्रिनिटी"  रोबर्ट के नेतृत्व में 1939 और 1945 के बीच  वैज्ञानिकों कीया और 16 जुलाई 1945 को पहला परीक्षण किया |  परमाणु सिद्धांत का जनक जॉन डोनाल्ट  को माना जाता है लेकिन उससे भी 900 वर्ष पहले ऋषि कणाद  ने वेदो में लिखें सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था|  भारतीय इतिहास में ऋषि कणाद को  परमाणु सिद्धांत का जनक माना जाता है | उन्होंने बताया था कि द्रव्य के भी परमाणु होते है | एक इतिहासकार टीएन कलेबोर्क अपनी बुक में लिखते है की एक समय ऐसा था जब अणु शास्त्र में आचार्य कणाद और दुसरे भारतीये विज्ञानिक यूरोपीय वैज्ञानिको की तुलना में बहुत आगे थे |

5. विमान :-
 

पूरी दुनिया को यह बात बताई जाती है की विमान का आविस्कर राईट ब्रदर्स ने किया किया है,लेकिन भारतीये इतिहास को पलटकर देखा जाये तो इसका श्रेय भारत को ही जाता है |आधुनिक विज्ञानं की दृष्टी से देखा जाये तो आज के जो विमान है उनकी खोज राईट ब्रदर्स ने की होगी | लेकिन उनसे हजारो वर्ष पहले महर्षि भारद्वाज ने विमान शास्त्र लिखा था जिसमे हवाई जहाज बनाने की विधि का वर्णन मिलता है | महर्षि भारद्वाज द्वरा लिखित विमान शास्त्र में एक उड़ने वाला यंत्र यानि की विमानो के कई प्रकर के वर्णन मिलते है | इसके अलावा हवाई युद्ध के नियम और प्रकार का भी वर्णन मिलता है | उन्होंने विस्तार से लिखा है की गोदा एक असा विमान था जो गायब हो सकता था | स्कंध पूरण के खंड 3 अध्याय 23 में उलेख मिलता है की ऋषि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए एक विमान की रचना की थी जिसके द्वारा आकाश मार्ग से कहीं भी आया जाया जा सकता था | रामायण में भी पुष्पक विमान का उल्लेख मिलता है | लेकिन दुर्भाग्य से भारत में हुए इन आविष्कारों पर विदेशियों ने अपनी मोहर लगा ली |

भारत का भूगोल ज्ञान

  भारत का भूगोल ज्ञान -

हमारे वेद ,पुराणों में भूगोल की वो जानकारी है जो आज के आधुनिक युग को भी पीछे छोडती है|  लेकिन  हम लोगो के उपर पश्चिम  का भूत सवार है ,हम मानते है की जो भी ज्ञान आज दुनिया में है वो पश्चिम के देशों से आया है  | लेकिन यह सही नही है  आज मै आपके सामने  एसे उद्धरण पेश करूंगा जो आपकी सोच को बिलकुल बदल कर रख देंगे |

 1. अफ्रीका महाद्वीप को पुराणों में अंधकार द्वीप कहते है | जब इंग्लेंड में मिश्र की नील नदी की खोज शुरू हुई तो उस मिशन की कमांड जान स्पीकी को दी गयी | 1859 में उसने नील नदी के उद्गम की खोज की यात्रा आरंभ कर दी और 1862 में वह मील नदी के उद्गम स्थल विक्टोरिया झील पहुँच गया |  फिर 1863 में उसने एक बुक लिखी जिसमे उसने उस यात्रा के बारे में सब लिखा था और उस बुक का नाम था "journal of the discovery of the sources of the nile " इस बुक में वह लिखता है की "इस खोज के समय मेरे मित्र कर्नल रूबी ने मुझे विल्फ्रेड द्वरा बनाये हिन्दू पुराणों अनुसार नील नदी के नक़्शे तथा एक ५० पाज का निबंध दिया | जिसकी मदद से  ही मै अपने गंतव्य तक पहुँच पाया " 
इस बुक के पहले पन्ने पे वह नक्शा छापा है जिसपे लिखा है "काली अथवा महा कृष्णा  नदी का मार्ग हिन्दू पुराणों के अनुसार ".

2. पुराणों में अफ्रीका महाद्वीप को शंख द्वीप कहते है | आज हम अगर विश्व  के नक़्शे को देखेगें तो हमें पता चल जायेगा की अफ्रीका की आक्रति शंख के सामान है | वहां के भोगोलिक नाम आज भी पुराणों से मिलते है माली सुमाली  ये अफ्रीका खंड के 2 प्रदेशो के नाम है और ये नाम रावन के सम्बन्धियों के है जिनका जिक्र रामायण में आता है |रामायण में वर्णित सुन्द -उपसुन्द नामक असुरो के नाम से यहाँ जनजातियाँ भी है | 

3.बाल्मीकि रामायण में भूगोल के संबंध में पूर्व ,पश्चिम ,उतर, दक्षिण दिशाओं के बारे में जिक्र आता है जिसमे सुग्रीव वनरो को सभी दिशाओं में भजते हुए बोलते है की "मै आकाश मार्ग से जब जा  रहा था तो प्रथ्वी घुमती हुई दिखाई दी"| विज्ञानं ने यह अभी कुछ 100 सालो पहले यह बताया है लेकिन सुग्रीव ने तो यह कितने वर्षों पहले बता दिया था | इसके आगे सुग्रीव वनरो को बताते है की उन्हें किस दिशा में क्या क्या मिलेगा | उन्होंने उतर दिशा में जाने वाले दल को कहा की हिमालय को पार करने के बाद एक बर्फीला इलाका आएगा उसमे बहुत आगे जाने के बाद एक सिसिर परदेश (सीबेरिया) आएगा जो ध्रुव का अंतिम कोना होगा | इसके आगे मत जाना क्यूंकि इसके आगे कोई इन्सान नही रहता | सुग्रीव ने भूगोल के बारे में जो वर्णन किया है ,यदि आज के युग में उसका विश्लेषण किया जाये तो एक आश्चर्य  लगेगा | 

4. पुराणों में पर्थ्वी का एक नाम अग्निगर्भा  आता है | आज विज्ञानं का छात्र तो जनता है की धरती बहार से सीतल लेकिन अंदर से जलता हुआ लावा है | लेकिन पुराणो में इसका वर्णन बहुत प्राचीन समय से है | 

Thursday, 13 September 2018

बढ़ना ही अपना काम है


        बढ़ना ही अपना काम है 


                  आँधी  क्या है   तूफान   मिले , चाहे  जितने  व्यवधान  मिले ,
                  बढ़ना  ही  अपना काम है , बढ़ना  ही  अपना  काम  है || 

                  हम  नई  चेतना   की  धारा, हम  अंधियारे  में   उजियारा ,
                  हम  उस  ब्यार  के  झोंके हैं , जो हरले सब का दुःख  सारा || 

                  बढ़ना  है शूल मिले तो  क्या, पथ पर अंगार  पीछे   तो क्या ,
                  जीवन  में  कहाँ  विराम  है , बढ़ना  ही  अपना  काम  है | |

                  हम  अनुयायी  उन  पाँवों के , आदर्श  लिए  जो  खड़े   हुए ,
                  बाधाएँ  उन्हें  डिगा न  सके ,  जो  संघर्ष  पर   अड़े   हुए  || 

                  सिर पर  मंडराता  काल  रहे ,करवट  लेता   भूचाल   रहे ,
                  पर  अमिट  हमारा  नाम है ,बढ़ना  ही  अपना  काम  है || 
                  
                  वो  देखो  पास  खड़ी  मंजिल ,  इंगित  कर  हमें  बुलाती  है ,
                  साहस   से  बढ़ने  वालों  के , माथे  पर  तिलक  लगाती है || 

                  साधना  व्यर्थ न कभी जाती ,  चलकर ही मंजिल  मिल पाती , 
                  फिर क्या  बादल क्या घाम है ,  बढ़ना  ही  अपना  काम  है || 
                  बढ़ना  ही  अपना  काम  है ......................

Wednesday, 12 September 2018

भारत का प्राचीन वनस्पति विज्ञान

वर्तमान काल के महान वैज्ञानिक  जगदीश चंद्र बसु ने सिद्ध किया कि चेतना केवल मनुष्य और पशुओं ,पक्षियों तक ही सीमित नहीं है|  अपितु वह वृक्षों और निर्जीव पदार्थों में भी समाहित है उन्होंने कहा कि निर्जीव और सजीव दोनों समान  हैं इनमे अंतर केवल इतना है कि धातुओ  में थोड़ी कम संवेदनशील होती हैं जिनमें डिग्री का अंतर है परंतु चेतना सब में होती है | 

महाभारत के शांतिपूर्व में 184 वीं अध्याय में महर्षि भारद्वाज  और भृगु  का संवाद है जिसमें महर्षि भारद्वाज पूछते हैं कि वृक्षो जो  की न देखते हैं न सुनते हैं, पर न ही गंध  का अनुभव करते हैं ना ही उन्हें स्पर्श का ज्ञान होता है | फिर भी वे  पंचभौतिक व चेतन कैसे हैं ? महर्षि भृगु   उत्तर देते हुए कहते हैं  की वृक्ष ठोस  जान  पड़ते हैं परंतु उनमें आकाश है, तभी उनमें नित्य फल फूल आदि की उत्पत्ति संभव है|  वृक्षों के अंदर गर्मी से ही उनके पत्ते फल फूल जल  जाते हैं झड़ जाते हैं, उनमें स्पर्श का ज्ञान भी है|  वायु अग्नि बिजली की कड़क आदि भीषण शब्द होने पर वृक्षों के फल फूल गिर जाते हैं| इसलिए वे  सुनते भी हैं | लता वृक्ष को चारों ओर से लपेट कर उसके ऊपर चढ़ जाती है बिना देखे किसी को अपना मार्ग नहीं मिलता अतः वे  देखते भी हैं|  पवित्र और अपवित्र गंद से तथा विभिन्न प्रकार के धूपों  की गंध से वृक्ष निरोग होकर फलते-फूलते हैं अतः वे  सूंघते भी हैं | वृक्ष अपनी जड़ से जल पीते हैं अतः वे इंद्रिय भी हैं|

 महर्षि पराशर ने वनस्पतियों का वर्गीकरण किया है आश्चर्य है कि पराशर का वर्गीकरण आधुनिक  काल के वर्गीकरण से मिलता-जुलता है | वृक्षायुर्वेद ग्रंथ में वनस्पति विज्ञान का वैज्ञानिक विवेचन उन्होंने किया है | उन्होंने चौथे अध्याय में  प्रकश संश्लेषण की क्रिया के बारे में कहा है

                    " पत्राणि तू वातालपर रेंजकानि अभिग्रेहणान्ति "

वृक्ष के विकास की संपूर्ण गाथा का वर्णन उन्होंने किया है|  जिस प्रकार पार्थिव  रस  जड़ से स्यन्दिनी नामक वाहिकाओं के द्वारा ऊपर आता है | यह रस पत्ते तक  पहुंचता है तब यह दो प्रकार की शिराओं, उपसर्ग और अपसर पर जो जाल  की तरह पत्ते में  होती हैं उनमें पहुंच जाता है|  यहां संश्लेषण की प्रक्रिया होती है| अर्थात यह अनु के समान माइक्रोस्कोपिक है जिसमें रस है और यह कला में अवशिष्ट है

भारत का महान वस्र विज्ञान



तक़रीबन 30 0 वर्ष पहले  तक जब अंग्रेजो ने अपना संप्रभुत्व भारत पर स्थापित नहीं किया था भारत अपनी तकनिकी के कारण  वस्र उद्घोग में  दुनिया में शीर्ष पर था | इजिप्ट  से लेकर रोम तक भारतीय कपडे के कारण ही कपडे का व्यापर चलता था इसके परे में अनेक विदेशी लेखकों ने लिखा है | उन्होंने लिखा है की "जहाँ भी आपको कलात्मक और सूंदर वस्त्र मिलेंगे तो समझ लो की वे भारत के बंगाल , कोरोमंडल  और अवंतिका में ही बने होंगे |
इन वस्त्रो के बारे में अनेक कथाएँ चली हुई है
  • एक बार ओरंजेब की पुत्री दरबार में आयी तो उसका सारा शरीर वस्त्रों के अंदर से दिख रहा था | ओरंजेब एक कटटरपंथी शासक था लेकिन वह अपनी बेटी से बहुत प्रेम करता था | उसे अपनी बेटी की ऐसी स्थिति पर गुस्सा आया और उसने कहा की बेशर्म ,बेहया  तुझे शर्म नहीं आती | ऐसे कपडे पहनकर लोगों को अपना बदन दिखते हुए | तब उसकी पुत्री ने कहा , मै क्या करू मेने इस कपडे को सात बार तह करके पहना है इसके बाद भी यही स्थिति है | इससे यही पता चलता है की भारत में कितना महीन कपडा बनता था |

ढाका की मलमल के बारे में हम सुनते है की एक अंगूठी के अंदर से पूरा थान निकाला जा सकता था | इलाइची के खोल के अन्दर एक कपडा आजाता था | 

  • एक बार एक अरब देश का एक राजदूत भारत से अपने देश गया | उसने आपने राजा को एक नारियल भेंट दिया | उस नारियल को जब दरबार में तोडा गया तो उसके अंदर से एक 30 yard लम्बा कपडे का थान निकला  जो की साबुत है की भारत में कितना महीन कपडा बना लेते थे | 

प्राचीन समय के विदेशी लेखकों ने भारतीय कपड़ों को अनेक सुंदर नाम दिए हैं जैसे कि कोई कविता गा रहे हैं मयूर कंठ बुलबुल की आंख संध्या की ओस बसती हवा बहता पानी आदि
 Mr.  Joseph  back  को उनके मित्रों ने ढाका की मलमल का एक टुकड़ा भेंट किया जिसका वजन 34 ग्रेन  था | एक पौंड में 7000 ग्रेन  होते हैं जिसमें 198 धागे थे उस कपड़े का धागा लंबा करें तो वह 1029 गज का  बनता था जिसका मतलब एक ग्रेन  में 29. 98  गज धागा था|  इसका मतलब है 2425 अकाउंट का धागा|  आज के विकसित और आधुनिक युग में 500 अकाउंट से अधिक का कोई धागा  नहीं बनता| ऐसे वर्णन उसने कंपनी को लिखकर भेजा था| 

इसके बाद अंग्रेजो ने भारत के वस्त्र उघोग को ख़तम करने के लिए बसे जोरों से प्रयास किये | उन्होंने भारतीय कपडे पर अधिक tax  लगा दिए  ताकि महँगा होने के कारण लोग इसे न पहने | लेकिन लोगो ने पहनना नहीं छोड़ा | बाद में कपडा पहनने पर जेल की सजा ,जुरमाना लगा दिया | कपडा बनाने वाले कारीगरओ के अंगूठे कटवा दिए | जिसके कारन भारत का कपडा उद्योग नस्ट हो गया | 

Sunday, 9 September 2018

राष्ट्रभासा हिंदी व महापुरुषों का योगदान

 वो दिन था 14 सितंबर, 1949 का जब  हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था तब से हर साल  14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है|  लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है? 
इसके पीछे एक वजह है साल 1947 में जब भारत अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ तो देश के सामने भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था की देश की भाषा क्या हो ? 
क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती है | 6 दिसंबर 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान का गठन हुआ | संविधान सभा ने अपना 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को अंतिम रूप दे दिया | आजाद भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश में लागू हो गया | 
भारत की कौन सी  भाषा राष्ट्रभाषा के रूप में चुनी जाएगी ये मुद्दा काफी अहम था | काफी सोच विचार के बाद हिंदी राष्ट्र भाषा  चुना गया | संविधान पीठ  ने देवनागरी लिपी में लिखी हिंदी को अंग्रजों के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया |  14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी | और तभी से 14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है  | 
भले ही राजभाषा का दर्जा हिंदी को 1949 में मिला हो लेकिन उससे पहले  हिंदी को पतन से रोकने के लिए व हिंदी के उत्थान  के लिए अनेक महापुरुषों ने कार्य किया | 
  • बाल गंगाधर तिलक :- सवराज हमारा जन्मसिद्व अधिकार है का नैरा देने वाले तिलक जी स्वदेशी के बहुत बड़े समर्थक थे | वे मानते थे की हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जो राष्ट्र भाषा  बनाने के लायक है  | वे हिंदी को राष्ट्र भाषा ही मानते थे | इसलिए उन्होंने लोगों तक अपनी बात पहुंचने के लिए हिंदी भाषा का प्रयोग किया | तथा एक" हिंदी केशरी " नामक पत्रिका का संपादन भी किया
  • प. मदन मोहन मालवीय :-मालवीय जी एक महान राष्ट्रीय नेता थे | जो तीन बार हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने | वे अपने कार्यक्रमों में हिंदी का प्रयोग करते थे  तथा अन्य लोगों को भी हिंदी भाषा का प्रयोग करने के लिए उत्साहित करते थे  | 1886 में अधिवेशन में मालवीय जी के व्याख्यान से प्रभावित होकर कंकर के राजा ने उन्हें हिंदुस्तान दैनिक पत्र का संपादक बनाया था | उन्होंने 1907 में साप्ताहिक हिंदी पत्रिका अभ्युदय का प्रारंभ किया तथा  उन्होंने हिंदी को गति देने के लिए 1910 में इलाहाबाद से "मर्यादा "हिंदी मासिक पत्रिका का संपादन किया |  मालवीय जी हिंदी के महान प्रेमी थे  | उनके मन में हिंदी के लिए एक विशेष आदर का भाव था इसलिए उन्होंने शिक्षा में हिंदी की अनिवार्यता पर बल दिया  | न्यायालय में  हिंदी को स्थान दिलाने का श्रेय मालवीय जी को ही जाता है |  उनकी प्रेरणा से देश में हिंदी के प्रति प्रबल अनुराग और राष्ट्रीयता का भाव जगा | 
  • डा. राजेंद्र प्रसाद :-डॉ राजेंद्र प्रसाद अखिल भारतीय कांग्रेस के सम्मानीय सदस्य थे  | देश की सभी  भाषाओं से इनका गहरा संबंध था | हिंदी के प्रयोग हेतु सब को प्रेरित करते थे|  उनके हिंदी के प्रति विचार हैं" मैं हिंदी के प्रचार राजभाषा के प्रचार को राष्ट्रीयता का मुख्य अंग मानता हूं मैं चाहता हूं कि यह भाषा ऐसी हो जिसमें हमारे विचार आसानी से साफ साफ स्पस्टता पूर्वक के व्यक्त हो सकती हैं राष्ट्र भाषा होनी चाहिए जिसे केवल एक जगह के लोग  ही न समझे बल्कि उसे देश के सभी प्रांतों में  सुगमता से पहुंचाया जा सके"| 
  • सेठ गोविन्द दास :-हिंदी  भाषा के प्रचार के साथ इसे राष्ट्रभाषा के रूप में सुशोभित करने में सेठ गोविंद दास की भूमिका अतुल्यनीय है | यह उच्च कोटि के साहित्यकार थे | तथा उनकी नाटिकाओं से हिंदी साहित्य मोहक रूप में समृद्ध हुआ | उन्होंने जबलपुर से शारदा ,लोकमत,  जय हिंद पत्रिकाओं की शुरूआत कर जन मन में हिंदी के प्रति प्यार जगाने और साहित्य परिवेश बनाने का अनुप्रेरक प्रयास किया |  भारतीय संविधान सभा में हिंदी और हिंदुस्तानी को लेकर उठे विवाद को शांत करने में सेठ गोविंददास का विशेष महत्व रहा है | 
और भी बहुत व्यक्ति हुए जिन्होंने हिंदी को बचने में तथा राष्ट्र भासा बनाने में अपनी भूमिका निभाई थी जिनका जिक्र माँ आज नहीं क्र पाया | 

success story of youtube

यूट्यूब एक अमेरिकी कंपनी है जिसकी स्थापना 2005  में  चाड हार्ले  ,स्टीव चेन  और जावेद करीम ने की थी |
यो तीनों Paypal कंपनी में  जॉब करते थे | जब Paypal को Ebay  कंपनी ने खरीद  लिया  तो इन्होने अपनी जॉब से हाथ धोना पड़ा |
Youtube  का विचार इनके मन में2005  में आया जब इन तीनो ने एक पार्टी राखी और उसका एक वीडियो बनाया | जावेद उस वीडियो को सभी दोस्तों  दिखाना चाहते थे लेकिन कोई वीडियो शेयर प्लेटफार्म न होने के कारण वे ऐसा नहीं कर सके |

ऐसी ही एक घटना और घटी | उन दिनों जस्टिन जैक्सन और जस्टिन ट्रीम्बर का एक शो हुआ जिसमे जस्टिन की शर्ट स्टेज पर उतार दी गयी थी  यह घटना  US में एक सुपर बॉउल घटना बन गयी थी | जावेद उस घटना का वीडियो दोबारा देखना चाहते थे लेकिन टीवी पर इस वीडियो  को बैन के दिया गया था | और उस वक्त वीडियो देखने का और कोई माध्यम नहीं था |
तब जावेद को लगे की न जाने कितने वीडियो होंगे जो लोग दोबारा देखना चाहते है लेकिन देख नहीं पाते | तब जावेद ने अपने मित्रों  स्टीव और चाड से एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने की बात कही जिसमे वीडियो को शेयर किया जा सके |
तब इनके मित्रो के मन में भी एक ऐसा ही विचार था | 2004 में आयी  सुनामी  आयी थी | स्टीव और चाड को लग रहा था की जब कोट बड़ी घटना या दुर्घटना होती है तो कोई न कोई तो उसे अपने कैमरे में शूट कर लेता है |  लेकिल शेयर नहीं के पते ताकि सब लोग देख सके | 

इन्ही घटनाओँ से प्रभावित होकर  चाड हार्ले  ,स्टीव चेन  और जावेद करीम ने Youtube  कंपनी की स्थापना करी | 

परीक्षित को ऋषि पुत्र का श्राप

एक समय की बात है एक जंगल में श्रृंगी ऋषि  तपस्या कर रहे  थे|  उसी जंगल में राजा परीक्षित शिकार खेलने आए|  गर्मी के कारण उन्हें बहुत प्यास लगी और वे  जल की तलाश में निकल पड़े | उन्होंने निकट ही एक आश्रम देखा और वहां पर चले गए | वहां पर उन्होंने श्रृंगी ऋषि को तपस्या करते हुए देखा और उन्हें जल लेने के लिए  पुकारा| तपस्या में लीन होने के कारण उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया |  राजा भी  अपने घमंड में थे |  बार-बार पुकारने पर भी जब ऋषि ने अपनी आंखें नहीं खुली तो राजा को गुस्सा आ गया और उहोने धनुष की नोक से  मरे हुए सांप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और पास रखे घड़े से खुद ही  पानी पीकर वहां से चले गए |  राजा के जाने के पश्चात ऋषि श्रृंगी के  पुत्र को उसके मित्रों ने बताया कि राजा परीक्षित ने  यहां आकर उनके पिता का अपमान किया और उनके गले में मृत सांप डाल दिया |  यह सुनकर ऋषि पुत्र को बहुत अधिक गुस्सा आया और राजा को श्राप दिया कि आज से ठीक 7 दिन बाद उन्हें नागराज तक्षक डस लेगा |  ऋषि पुत्र के इस श्राप का पता चलते ही राजा परीक्षित भयभीत हो उठे और उन्होंने श्राप  से बचने के लिए हर संभव प्रयास किया |  किंतु होनी को कौन टाल सकता था |  समय निकट आते ही तक्षक राजा परीक्षित को डसने के लिए निकल पड़ा रास्ते में उनकी भेंट एक कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण से हुई  |  ब्राह्मण ने पूछा कि तुम कहां जा रहे हो तो तक्षक ने बताया कि वह श्राप  के अनुसार राजा परीक्षित को दंशने  जा रहा है|  तब  ब्राह्मण  ने कहा कि वह राजा परीक्षित को बचाने के लिए जा रहा है|  यह सुनकर नागराज तक्षक ने  पास में ही एक पेड़ के ऊपर अपना विष फेंक  दिया जिससे वह पेड़ जलकर सूख गया | तभी उस ब्राह्मण ने हाथ में जल लेकर कुछ मंत्र पढ़कर उस पेड़ पर छिड़क दिया जिससे वह पेड़ वापिस हरा हो गया   इस पर तक्षक को बहुत हैरानी हुई और उसने ब्राह्मण  से क्षमा मांगी और उन्हें यह समझा कर कि श्राप को टाला नहीं जा सकता है  और उन्हें वापस भेज दिया  | तक्षक भी   अपने मार्ग पर आगे बढ़ गया और ठीक सातवें दिन उसने राजा परीक्षित को डस लिया जिससे राजा परीक्षित की मृत्यु हो गयी | 

Saturday, 8 September 2018

सदियों पहले से शून्य की उपस्थिति

हाल ही में कार्बन डेटिंग से पता चला है कि शून्य  की मौजूदगी का सबसे पहला रिकॉर्ड हमारे अब तक के ज्ञान से भी पुराना है | यह जानकारी एक प्राचीन भारतीय पांडुलिपि में मिले प्रमाण से मिलती  है 1902 से ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में रखी गई बखशाली  पांडुलिपि  की तीसरी या चौथी शताब्दी की बताई जा रही है | इतिहासकारों के पास इस पांडुलिपि के बारे में जो जानकारी थी उससे यह कई सौ साल पुरानी बताई जा रही है|  यह पांडुलिपि पाकिस्तान के पेशावर में 1881 में मिली थी जिसके बाद में इसे  ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड में बड़लियन  लाइब्रेरी में रखा गया  था |  बड़लियन  लाइब्रेरी से रिचर्ड ओवेनडेन  कहते हैं कि यह नई जानकारियां गणित के इतिहास के लिए काफी महत्वपूर्ण है प्राचीन भारत में गणित में इस्तेमाल होने वाला बिंदु समय के साथ सुनने के रूप में विकसित हुआ और इसे पूरी कुंडली में देखा जा सकता है लाइब्रेरी के मुताबिक से प्रारंभिक तौर पर संख्या प्रणाली में कर्म के ग्रुप बनती है बनती थी लेकिन समय के साथ में क्षेत्र विकसित हुआ पहले के शोध में लिखो 8 वीं शताब्दी के बीच माना जा रहा था लेकिन कार्बन डेटिंग के मुताबिक यह कई सदियों पुरानी है खे अनुवाद से पता चलता है कि शब्दों से बनी हुई है इसमें तीन अलग-अलग काल की सामग्रियों के प्रमाण मिले हैं यह सिल्क रूट के व्यापारियों के लिए प्रशिक्षण पुस्तिका थी और इसमें गणित के व्यावहारिक अभ्यास हैं जो बीजगणित के समान प्रतीत होता है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर देखने को मिलता है कि अगर कोई सामान खरीदे और बेचे तो आपके पास क्या बचा जाता है  | 

नोजवाँ बढ़े चलो की देश का सुधर हो

"नोजवाँ  बढ़े चलो की देश का सुधर हो "

गाँव की गुहार पर कॉम की पुकार पर ,
नोजवाँ  बढ़े चलो की देश का सुधर हो |

राग एक चाहिए की भावना मचल उठे ,
चिराग एक चाहिए की लक्ष्य दिप जल उठे | 
एक रेक, एक टेक,  एक ही विचार हो |
नोजवाँ बढे चलो .................||

अन्न की की न हो भूख ज्वर  कहीं न हो ,
धरा दुखी न दीन हो न तन वसन विहीन हो | 
गॉव घर गली गली सुज्ञान का प्रचार हो  ,
नोजवाँ बढे चलो .................||

हो नवीन भावना की बाहु बल संभाल हो ,
हो नवीन चेतना की हाथ में मशाल हो | 
शक्ति  साधना  करो की  उद्धार हो  ,
नोजवाँ बढे चलो .................||


दृढ़ इरादों से मिलती है सफलता

 कोई भी कार्य कितना ही जटिल क्यों ना हो यदि मजबूत इच्छाशक्ति हो तो अंततोगत्वा उसे पूरा करने में सफलता हासिल होती ही है |  यह कहानी है लंदन के बालवर्ध  उपनगर की जो अपराधियों की बस्ती के रूप में जाना जाता था |  यहां के अधिकांश निवासी निर्धन और अशिक्षित थे|  इसी वजह से अपराध का ग्राफ काफी ऊपर था | बस्ती के इस प्रदूषित माहौल ने बच्चों को भी अपनी चपेट में ले लिया था  | छोटे-छोटे बच्चे भी गलत कार्यों में संलग्न थे |  ऐसे समय में यहां 1 दिन एक युवक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूर्ण करके आया  | उसने पहले बस्ती के लोगों से परिचय बढ़ाया और धीरे-धीरे उनके साथ घुल मिल गया |  जब सभी उसे पसंद करने लगे तब उसने अपने छोटे कमरे में पहले बस्ती के बच्चों को पढ़ाना आरंभ किया |  वह उन्हें दैनिक जीवन की छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातें बताता और उदाहरणों से अपनी बातों को स्पष्ट करता  | फिर धीरे-धीरे वह उन्हें उत्तम संस्कार देने लगा बस्ती के लोगों को महसूस हुआ कि यह व्यक्ति उनके बच्चों को सही शिक्षा दे रहा है ,क्योंकि उन्होंने बच्चों में काफी सुधार महसूस किया  |  इससे  बस्ती के लोगों में युवक के प्रति विश्वास बढ़ा |  युवक ने अपने काम को आगे बढ़ाते हुए लोगों से कहा हर रविवार आप सभी  कक्षा में आया करे |  वे लोग तैयार हो गए युवक ने उन्हें तैयार किया कि वे सप्ताह में एक दिन कोई अपराध न करें  | युवक की अच्छाई से अभिभूत लोगों ने इसे भी स्वीकार कर लिया फिर लोगों ने स्वयं ही तय किया कि वे 4 दिन तक कोई अपराध नहीं करेंगे |  धीरे-धीरे वॉलवर्ध  का पूर्णता कार्यकलाप हो गया |  और वह सभ्य समाज का एक अंग बन गया |  वह समाज सुधारक युवक बाद में भारत आया जिसे सीएफ एडरयूज  (दीनबंधु) के नाम से जाना जाता है |  यह सत्य कथा संकेत करती है कि यदि संकल्प दृढ़ हो तो मार्ग में आने वाली बाधाएं हट जाती हैं  | और सफलता के द्वार खुलते जाते हैं कार्य कितना ही जटिल क्यों ना हो यदि मजबूत इच्छाशक्ति हो तो अंततोगत्वा सफलता प्राप्त होती ही है | 

स्वयं अब जागकर हमको

स्वयं अब जागकर हमको । जगाना देश है अपना ।

स्वयं अब जागकर हमको । जगाना देश है अपना ।।

 हमारे देश की मिट्टी , हमें प्राणों से प्यारी है ,
यही के अन्न जल वायु , परम श्रद्धा हमारी है ।
स्वभाषा है हमें प्यारी , हो प्यारा देश है अपना ।|
जगाना देश है अपना........


नही हे अब समय कोई , गहन निद्रा में सोने का ।
समय है एक होने का , न मतभेदों में खोने का ।
बढ़े बल राष्ट्र का जिससे , वो करना मेल है अपना ।
जगाना देश है अपना........


 जतन हो संगठित हिन्दु , सक्रिय भाव भरने का ।
जगाने राष्ट्र की भक्ति , उत्तम कार्य करने का ।
सम उन्नत राष्ट्र हो भारत , यही उद्देश्य है अपना ।
जगाना देश है अपना.......

विश्व विजय दिवस THE STORY OF CHICAGO Parliament of the World's Religions

विश्व  विजय दिवस  :-( विश्व  विजय दिवस) इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते है |  11सितम्बर 1893 में एक भारतीय संत ने अपने विचारो और अपने ओजस्वी भाषण  से समस्त विशव  के लोगो को  अपनी हिन्दू संस्कृती का हृदय से समर्थक बना दिया था | जी हाँ  मै बात कर  रहा हूँ  स्वामी विवेकानंद जी की  जिन्होंने 125 वर्ष  पहले  1893 में अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में हिंदुत्व का डंका बजा दिया था | जिनहोने अपने भाषण का आरम्भ मेरे अमेरिकी भाईयों और बहनों  से करके सभी लोगों का ह्रदय छू लिया | वहाँ उपस्थित सभी व्यक्ति ये शब्द सुनकर अपनी जगहे से खड़े होकर तालियों की बौछार करने लगे  थे | 

 विवेकानंद जी के भाषण के कुछ अंश 
          11सितम्बर 1893
अमेरिका की बहनों और भाईयों  यह आपके दिल को गर्म और सौहार्दपूर्ण स्वागत के जवाब में बढ़ने के लिए अनजान है जो आपने हमें दिया है। मैं दुनिया में भिक्षुओं के सबसे प्राचीन आदेश के नाम पर धन्यवाद; मैं धर्मों की मां के नाम पर आपका धन्यवाद करता हूं; और मैं आपको सभी वर्गों और संप्रदायों के लाखों और लाखों हिंदू लोगों के नाम पर धन्यवाद देता हूं। मेरा मंच, इस मंच पर कुछ वक्ताओं के लिए भी, जो ओरिएंट के प्रतिनिधियों का जिक्र करते हैं, ने आपको बताया है कि दूर-दराज के देशों के ये लोग अलग-अलग देशों को झुकाव के विचार से सम्मानित करने का सम्मान कर सकते हैं। मुझे एक ऐसे धर्म से संबंधित गर्व है जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों को सिखाया है। हम न केवल सार्वभौमिक गति में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सत्य मानते हैं। मुझे ऐसे राष्ट्र से संबंधित गर्व है जिसने सताए गए और सभी धर्मों और पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बताने पर गर्व है कि हमने अपने बस्तियों को इस्राएलियों के सबसे शुद्ध अवशेषों में इकट्ठा किया है, जो दक्षिणी भारत आए थे और उसी वर्ष हमारे साथ शरण ली थी जिसमें उनके पवित्र मंदिर रोमन अत्याचार से टुकड़े हो गए थे। मुझे उस धर्म से संबंधित गर्व है जिसने आश्रय दिया है और अभी भी ग्रैंड जोरोस्ट्रियन राष्ट्र के अवशेष को बढ़ावा दे रहा है। हे भाइयो, मैं आपको बताऊंगा कि एक भजन से कुछ पंक्तियां जो मुझे याद है कि मेरे शुरुआती बचपन से दोहराया गया है, जो हर दिन लाखों मनुष्यों द्वारा दोहराया जाता है: जो दक्षिणी भारत आए और उसी वर्ष हमारे साथ शरण ली जिसमें उनके पवित्र मंदिर रोमन अत्याचार से टुकड़े हो गए थे। मुझे उस धर्म से संबंधित गर्व है जिसने आश्रय दिया है और अभी भी ग्रैंड जोरोस्ट्रियन राष्ट्र के अवशेष को बढ़ावा दे रहा है। हे भाइयो, मैं आपको बताऊंगा कि एक भजन से कुछ पंक्तियां जो मुझे याद है कि मेरे शुरुआती बचपन से दोहराया गया है, जो हर दिन लाखों मनुष्यों द्वारा दोहराया जाता है: जो दक्षिणी भारत आए और उसी वर्ष हमारे साथ शरण ली जिसमें उनके पवित्र मंदिर रोमन अत्याचार से टुकड़े हो गए थे। मुझे उस धर्म से संबंधित गर्व है जिसने आश्रय दिया है और अभी भी ग्रैंड जोरोस्ट्रियन राष्ट्र के अवशेष को बढ़ावा दे रहा है। हे भाइयो, मैं आपको बताऊंगा कि एक भजन से कुछ पंक्तियां जो मुझे याद है कि मेरे शुरुआती बचपन से दोहराया गया है, जो हर दिन लाखों मनुष्यों द्वारा दोहराया जाता है:

सुभाषित

सुत , दारा  अरु  लक्ष्मी,   पापी के भी होय | 


संत समागम ,हरि कथा ,तुलसी दुर्लभ  दोय || 

अर्थ :-तुलसी जी कहते है की पुत्र , पत्नी और लक्ष्मी तो पापी लोगों के पास भी होती है | संत का समागम और हरी कथा ये दोनों ही दुर्लभ होती हैं |  

भामा शाह का त्याग

यह बात उस समय  की है जब चित्तोड़ पर अकबर  ने कब्ज़ा कर लिया था | महाराणा प्रताप अपने परिवार और कुछ राजपूतों  के साथ  अरावली के वनो में भटकने को मजबूर थे | चित्तौड़ के महाराणा और सोने के पलंग पर सोने वाले उनके बच्चे भूखे -प्यासे पर्वत की गुफाओं में घास- पत्ते खाते और पत्थर की चट्टानों पर सो जाते थे लेकिन महाराणा प्रताप को इन सब कष्टों की चिंता नहीं थी|  उन्हें एक धुन  थी कि शत्रु से चित्तौड़ की पवित्र भूमि का उद्धार कैसे किया जाए|  किसी के पास काम करने का साधन न  हो तो उनका अकेला उत्साह क्या काम आएगा |  महाराणा प्रताप और उनके सैनिक भी कुछ दिन भूखे प्यासे रह सकते थे किंतु भूखे रहकर युद्ध कैसे चलाया जा सकता है? घोड़ों के लिए ?हथियारों के लिए ?सेना को भोजन देने के लिए तो धन चाहिए ही |  महाराणा के पास फूटी कौड़ी तक नहीं बची थी | उसके राजपूत और भील सैनिक अपने देश के लिए मर मिटने को तैयार थे ,उन देशभक्त वीरों को वेतन नहीं लेना था | किंतु बिना धन के घोड़े कहां से आएंगे? हथियार कैसे बनेंगे? मनुष्य और घोड़ों  को भोजन कैसे दिया जाएगा इतना भी प्रबंध न हो तो बड़ी निराशा हो रही थी|  अंत में एक दिन माराणा ने अपने सरदारों से विदा ली भिलों को समझा कर लौटा दिया प्राणों से प्यारी जन्मभूमि को छोड़कर महाराणा राजस्थान से कहीं बाहर जाने को तैयार हुए जब महाराणा अपने सरदारों को रोता छोड़कर महारानी और बच्चों के साथ में वन के मार्ग से जा रहे थे|



तभी महाराणा के मंत्री भामाशाह घोड़ा दौड़ आते आए और महाराणा के पैरों पर गिर कर फूट-फूट कर रोने लगे आप हम लोगों को अनाथ करके कहां जा रहे हैं|  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को उठाकर हृदय से लगाया और आंसू बहाते हुए कहा आज भाग्य हमारे साथ नहीं है अब यहां रहने से क्या लाभ |  मैं इसलिए जन्मभूमि छोड़कर जा रहा हूं कि कहीं कुछ धन मिल जाए और उससे सेना एकत्र करके चित्तौड़ का उद्धार करने फिर से लौटू | आप लोग तब तक धैर्य बनाकर रखें |  भामाशाह के पीछे उनके बहुत से सेवक घोड़ों पर धन की थैली लादकर ला रहे थे |  भामाशाह ने महाराणा के आगे धन का बडा भारी ढेर लगा दिया और फिर हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा महाराज यह सब धन आपका ही तो है | मैंने और मेरे बाप दादाओं ने चित्तौड़ के राज दरबार की कृपा से उसे इकट्ठा किया है | आप कृपा करके इसे स्वीकार कीजिए और इसे देश का उद्धार कीजिए | महाराणा यह यह सुनकर भावविभोर हो गये |  महाराणा प्रताप ने भामाशाह को हृदय से लगा लिया उनकी आंखों से आंसू की बूंद टपक टपक कर गिरने लगी | वह बोले लोग प्रताप को देश का उद्धार कहते हैं किंतु इस पवित्र भूमि का उद्धार तो तुम्हारे जैसे उदार पुरुषों से होगा |  तुम धन्य हो भामाशाह तुम धन्य हो |  उस धन से महाराणा प्रताप ने सेना इकट्ठी की और मुगल सेना पर आक्रमण किया मुगलों के अधिकार से बहुत सी भूमि महाराणा प्रताप ने जीत ली और उदयपुर में अपनी राजधानी बना ली |  महाराणा प्रताप की वीरता जैसे राजपूतों के इतिहास में विख्यात है वैसे ही भामाशाह का त्याग भी हमारे देश के इतिहास में विख्यात है ऐसे त्यागी पुरुष ही देश का गौरव होते हैं|

वन -वन भटके मान पर, देश -धर्म अभिमान पर | 
राणा वीर प्रताप मिट गए, देखो  अपनी   पर || 

Friday, 7 September 2018

नदिया ना पिए कभी अपना जल

नदिया ना पिए कभी अपना जल, 

वृक्ष ना खाए कभी अपने फल ।

अपने तन को  मन को  धन को देश  को दे जो दान रे ,
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे ॥


चाहे मिले सोना चांदी .....
चाहे मिले रोटी बासी | 
महल मिले बहु सुखकारी......
चाहे मिले कुटिया खली | 
प्रेम और सांतोस भाव से करता जो स्वीकार रे | 
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे 


 चाहे करे निंदा कोई.......
चाहे कोई गुण गान करे| 

फूलों से  सत्कार करे.........
कांटो  की चिंता न करे  ।

मान और अपमान ही दोनों, जिसके लिए सामान रे |  ,
वो सच्चा इंसान रे , वो सच्चा इंसान रे ॥

सुभाषित

उदये सविता रक्तो रक्ताश्चाऽस्तसमये तथा ।
सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता ॥ 


अथार्त :- सूर्य दोनों समय उदय और अस्त होने पर लाल रहता है | इसी प्रकार महापुरुष अच्छे और बुरे समय में  समान स्थिति में तहते है |