कुतुबुदीन की मोत के बारे में बताया जाता है की उसकी मोत पोलो खलते समय घोड़े से गिरने से हुई थी | लेकिन गोर करने वाली बात यह है की ये अफगान/तुर्की लोग पोलो खेलते ही नही थे |
वे बुजकसी खेलते थे जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है |,जो उस बकरे को लेकर मंजिल तक पहुँचता है वह जीत जाता है | फारस के प्राचीन लेखो के अनुसार कुतुबुदीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेक इलाको में अपना कहर बरसाया था |
उसका सबसे कड़ा विरोध उदयेपुर के राजा ने किया ,लेकिन कुतुबुदीन उन्हें हराने में सफल रहा | उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़ लिया | एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशीश की लेकिन पकडे गये | इस से क्रोधित होकर कुतुबुदीन ने उनका सर काटने का हुकुम दिया |
दरिंदगी दिखाने के लिए कुतुबुदीन ने कहा की बुजकशी खेला जायेगा,लेकिन इसमें बकरे की जगहे राजकुंवर का सर होगा | कुतुबुदीन ने इस कम के लिए घोडा भी राजकुंवर का "शुभ्रक " चुना | कुतुबुदीन शुभ्रक पर सवार होकर आपनी टोली के साथ जन्नत बाग पहुंचा | राजकुंवर को भी जंजीरों में बांध के वहां लाया गया | कुंवर का सर काटने के लिए उन्हें जंजीरों से खोला गया ,शुभ्रक उछाला और कुतुबुदीन को अपनी पीठ से निचे गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने पेरो से कई वॉर किये ,जिससे कुतुबुदीन वही मर गया | इससे पहले सिपाही कुछ समज पते राजकुंवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गये | शुभ्रक लगातार दोड कर उन्हें उदयपुर महल पहुंचा दिया|
कुतुबुदीन की मोत और शुभ्रक की स्वामी भक्ति की इस घटना के बारे में हमें नही पढाया जाता |लेकिन इस घटना के बारे में फारस के प्राचीन लेखकों ने बहुत लिखा है
"धन्य है भारत की भूमि ,जहाँ इन्सान तो क्या जानवर भी अपने स्वामी भक्ति के लिए प्राण दाव पर लगा देते है "|
वे बुजकसी खेलते थे जिसमे एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते है |,जो उस बकरे को लेकर मंजिल तक पहुँचता है वह जीत जाता है | फारस के प्राचीन लेखो के अनुसार कुतुबुदीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेक इलाको में अपना कहर बरसाया था |
उसका सबसे कड़ा विरोध उदयेपुर के राजा ने किया ,लेकिन कुतुबुदीन उन्हें हराने में सफल रहा | उसने धोखे से राजकुंवर कर्णसिंह और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़ लिया | एक दिन राजकुंवर ने कैद से भागने की कोशीश की लेकिन पकडे गये | इस से क्रोधित होकर कुतुबुदीन ने उनका सर काटने का हुकुम दिया |
दरिंदगी दिखाने के लिए कुतुबुदीन ने कहा की बुजकशी खेला जायेगा,लेकिन इसमें बकरे की जगहे राजकुंवर का सर होगा | कुतुबुदीन ने इस कम के लिए घोडा भी राजकुंवर का "शुभ्रक " चुना | कुतुबुदीन शुभ्रक पर सवार होकर आपनी टोली के साथ जन्नत बाग पहुंचा | राजकुंवर को भी जंजीरों में बांध के वहां लाया गया | कुंवर का सर काटने के लिए उन्हें जंजीरों से खोला गया ,शुभ्रक उछाला और कुतुबुदीन को अपनी पीठ से निचे गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने पेरो से कई वॉर किये ,जिससे कुतुबुदीन वही मर गया | इससे पहले सिपाही कुछ समज पते राजकुंवर शुभ्रक पर सवार होकर वहां से निकल गये | शुभ्रक लगातार दोड कर उन्हें उदयपुर महल पहुंचा दिया|
कुतुबुदीन की मोत और शुभ्रक की स्वामी भक्ति की इस घटना के बारे में हमें नही पढाया जाता |लेकिन इस घटना के बारे में फारस के प्राचीन लेखकों ने बहुत लिखा है
"धन्य है भारत की भूमि ,जहाँ इन्सान तो क्या जानवर भी अपने स्वामी भक्ति के लिए प्राण दाव पर लगा देते है "|